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एक थे पंडित हरि किशन

loksangharsha
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बाबरी मस्जिद से सम्बंधित मुसलमानों की तरफ से पहला मुकदमा 1961 में दाखिल किया गया। ये मुकदमा उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड आफ वक्फ ने किया। ये एक कार्पोरेट संस्था है। जिसकी रचना उत्तर प्रदेश मुस्लिम वक्फ एक्ट के अंतर्गत किया गया। वक्फ बोर्ड पर जिम्मेदारी थी कि वक्फ की तमाम जायदादों की निगरानी और हर तरह से इसकी रक्षा करेगी। 1960 के वक्फ एक्ट से पूर्व भी वक्फ बोर्ड था और उत्तर प्रदेश मुस्लिम वक्फ एक्ट 1936 के तहत काम करता था और इसलिए फैजाबाद जिले के परगना हवेली अवध के नगर अयोध्या में 1528 में बनी एक मस्जिद, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से प्रसिद्धि मिली, इस मस्जिद की हिफाजत की बात आई तो वह मुक़दमे में शामिल हो गया। अब चूंकि बाबरी मस्जिद की जगह मिट्टी का ढेर है इसलिए ये बताना बेवजह नहीं होगा कि मस्जिद की मुख्य ईमारत के बाहर एक चबूतरा हुआ करता था, जो उत्तर दक्खिन 17, और पूरब पश्चिम 21 फीट था, जो राम चन्द्र जी के जन्म स्थान के तौर पर सौ साल से ज्यादा अरसे से जाना जाता था। पहली बार 1885 ई में महंत रघुबर दास ने अपने आप को जन्म–स्थान का महंत बताया और एक मुकदमा (ओरिजिनल सूट नंबर 61/280, वर्ष 1883) दाखिल करके उल्लिखित चबूतरे पर ही मंदिर बनाने का मतालबा किया। महंत ने सेक्रेटरी आफ स्टेट फॉर इंडिया इन काउन्सिल के अलावा बाबरी मस्जिद के मुतावल्ली मोहम्मद असगर को पार्टी बनाया।

लेकिन फैजाबाद के सब-जज पंडित हरी किशन ने 24 दिसम्बर 1885 ई को यह मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया, याद रहे, ये मुकदमा मुसलमानों के खिलाफ नहीं था। महंत रघुबर दस ने इस फैसले के खिलाफ एक दीवानी अपील नंबर 27/1885 दाखिल की, इस को जिला-जज ने मार्च 1886 ई में ख़ारिज कर दिया। अवध के जुडिशियल कमिश्नर के समक्ष दाखिल दूसरी अपील भी ख़ारिज हो गयी।
ये कहा जाता है कि 1934 ई में सांप्रदायिक फसाद के दौरान बाबरी मस्जिद का एक हिस्सा ध्वस्त हो गया, लेकिन इसकी मरम्मत करा दी गयी थी, सरकारी खर्च पर एक मुसलमान ठेकेदार के जरिये। 1936 ई में उत्तर प्रदेश मुस्लिम वक्फ एक्ट XII निर्मित करने के बाद, इसके कानून के अनुसार वक्फ कमिश्नर ने जांच की और यह बताते हुए कि बाबरी मस्जिद बादशाह बाबर ने निर्माण कराई थी जो एक सुन्नी मुसलमान था।
बाबरी मस्जिद को वक्फ आम करार दिया गया। वक्फ कमिश्नर रिपोर्ट की कापी हुकूमत ने सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड आफ वक्फ को भेजी। जिसे कमिश्नर आफ वक्फ की रिपोर्ट को 16 फरवरी 1944 को पूरी तरह से सरकारी गजट में प्रकाशित करा दिया गया। वक्फ बोर्ड का कहना कि किसी व्यक्ति ने भी इस रिपोर्ट के खिलाफ एतराज दाखिल करके यह दवा नहीं किया कि वह मुस्लिम वक्फ नहीं बल्कि मंदिर है। महंत रघुबर दस की अपील अदालत से थी कि चूँकि कोई ईमारत नहीं है , इसलिए चबूतरे पर रहने वालों को सर्दी, गर्मी व बरसात में काफी तकलीफें होती हें, इसलिए इस चबूतरे पर मंदिर निर्माण की इजाजत डी जाये।
फैजाबाद के सब जज पंडित हरी किशन ने छ: बिंदु बताये और अंतत: अपने फैसले में कहा कि हालाँकि चबूतरे पर ठाकुर जी की मूर्ति है, और पूजा होती है और बाबरी मस्जिद और चबूतरे के बीच में दीवार है। 1885 ई में हिन्दुवों मुसलमानों में हिंसा के बाद एक कनाती दीवार बनाई गयी थी, ताकि मुसलमान दीवार के अन्दर इबादत कर सकें और हिन्दू दीवार के अन्दर पूजा कर सकें और भविष्य में विवाद न हो, इस तरह चबूतरा और बाउन्डरी की जमीन, हिन्दुवों की मुद्दे की हुई। लेकिन मंदिर तामीर करने की इजाजत नहीं डी जा सकती। क्यों कि मंदिर के घंटे और संख की आवाज गूंजेगी और हिन्दू और मुसलमान दोनों एक ही रास्ते से आये या जायेंगे, जिससे आने वाले दिनों में फौजदारी मामलात में वृद्धि होगी। और फसाद में हजारों लोगो का खून बहेगा। मंदिर बनाने की इजाजत देने का मतलब होगा, फसाद और कत्ले आम की बुनियाद रखना। अंतत: मुद्दई की अर्जी ख़ारिज कर दी जाती है।

एक थी बाबरी मस्जिद से साभार

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