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लेकिन फैजाबाद के सब-जज पंडित हरी किशन ने 24 दिसम्बर 1885 ई को यह मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया, याद रहे, ये मुकदमा मुसलमानों के खिलाफ नहीं था। महंत रघुबर दस ने इस फैसले के खिलाफ एक दीवानी अपील नंबर 27/1885 दाखिल की, इस को जिला-जज ने मार्च 1886 ई में ख़ारिज कर दिया। अवध के जुडिशियल कमिश्नर के समक्ष दाखिल दूसरी अपील भी ख़ारिज हो गयी।
ये कहा जाता है कि 1934 ई में सांप्रदायिक फसाद के दौरान बाबरी मस्जिद का एक हिस्सा ध्वस्त हो गया, लेकिन इसकी मरम्मत करा दी गयी थी, सरकारी खर्च पर एक मुसलमान ठेकेदार के जरिये। 1936 ई में उत्तर प्रदेश मुस्लिम वक्फ एक्ट XII निर्मित करने के बाद, इसके कानून के अनुसार वक्फ कमिश्नर ने जांच की और यह बताते हुए कि बाबरी मस्जिद बादशाह बाबर ने निर्माण कराई थी जो एक सुन्नी मुसलमान था।
बाबरी मस्जिद को वक्फ आम करार दिया गया। वक्फ कमिश्नर रिपोर्ट की कापी हुकूमत ने सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड आफ वक्फ को भेजी। जिसे कमिश्नर आफ वक्फ की रिपोर्ट को 16 फरवरी 1944 को पूरी तरह से सरकारी गजट में प्रकाशित करा दिया गया। वक्फ बोर्ड का कहना कि किसी व्यक्ति ने भी इस रिपोर्ट के खिलाफ एतराज दाखिल करके यह दवा नहीं किया कि वह मुस्लिम वक्फ नहीं बल्कि मंदिर है। महंत रघुबर दस की अपील अदालत से थी कि चूँकि कोई ईमारत नहीं है , इसलिए चबूतरे पर रहने वालों को सर्दी, गर्मी व बरसात में काफी तकलीफें होती हें, इसलिए इस चबूतरे पर मंदिर निर्माण की इजाजत डी जाये।
फैजाबाद के सब जज पंडित हरी किशन ने छ: बिंदु बताये और अंतत: अपने फैसले में कहा कि हालाँकि चबूतरे पर ठाकुर जी की मूर्ति है, और पूजा होती है और बाबरी मस्जिद और चबूतरे के बीच में दीवार है। 1885 ई में हिन्दुवों मुसलमानों में हिंसा के बाद एक कनाती दीवार बनाई गयी थी, ताकि मुसलमान दीवार के अन्दर इबादत कर सकें और हिन्दू दीवार के अन्दर पूजा कर सकें और भविष्य में विवाद न हो, इस तरह चबूतरा और बाउन्डरी की जमीन, हिन्दुवों की मुद्दे की हुई। लेकिन मंदिर तामीर करने की इजाजत नहीं डी जा सकती। क्यों कि मंदिर के घंटे और संख की आवाज गूंजेगी और हिन्दू और मुसलमान दोनों एक ही रास्ते से आये या जायेंगे, जिससे आने वाले दिनों में फौजदारी मामलात में वृद्धि होगी। और फसाद में हजारों लोगो का खून बहेगा। मंदिर बनाने की इजाजत देने का मतलब होगा, फसाद और कत्ले आम की बुनियाद रखना। अंतत: मुद्दई की अर्जी ख़ारिज कर दी जाती है।
एक थी बाबरी मस्जिद से साभार
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