Menu
blogid : 1016 postid : 116

चरवाहे से नाराज भेड़ों ने कसाई को मौका दे दिया

loksangharsha
loksangharsha
  • 132 Posts
  • 112 Comments


अन्तराष्ट्रीय शायर, वैज्ञानिक, डाक्युमेंट्री फिल्म निर्माता व सामाजिक कार्यकर्ता श्री गौहर रजा से समसामयिक विषय पर लोकसंघर्ष पत्रिका के प्रबंध संपादक रणधीर सिंह सुमन ने जंहगीराबाद मीडिया इंस्टिट्यूट में जाकर विशेष साक्षात्कार लिया

प्रश्न : पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम से आप क्या सोचते हैं ?

उत्तर : ब्रेख्त ने लिखा था और चरवाहे से नाराज भेड़ों ने कसाई को मौका दे दिया। उन्होंने जनवाद के खिलाफ मत दिया क्योंकि वह जनवादी थे बंगाल के सन्दर्भ में यह लाईनें मुझे याद आयीं इस रियलिटी से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि बंगाल की जनता सरकार से नाराज थी। उसकी वजह वामपंथ की गलतियाँ थी। जिसका सम्बन्ध मनोवैज्ञानिक था। इससे जो कुछ हुआ है भयंकर है। भयंकर इसलिए है कि चुनाव के बाद एक महीने के अन्दर ही पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ा दिए गए।
बिना लगाम के बाजार के हाथों मुल्क बेचने की प्रक्रिया इतनी तेज व भयंकर है कि इससे पहले इस मुल्क को यह गति देखने को नहीं मिली। जब वामपंथ कमजोर होता है तब वह अपने अन्दर कमजोर ही नहीं होता है बल्कि बुर्जुवा पार्टियों के अन्दर जो वामपंथी असर होता है वह भी कमजोर हो जाता है और हमारे सामने सैकड़ों हजारो उदहारण है बी.टी डंकल से लेकर मोंसंटो वहां से लेकर परमाणु डील तक या छोटे दफ्तर से लेकर कैबिनेट मिनिस्टर तक एक लूट की स्तिथि पैदा हो गयी है और इसमें आम आदमी की आवाज जो वामपंथी विचारधारा के गले से निकलती थी वह पूरी तरह से दब गयी यह है हमारी गलतियों का नतीजा है बंगाल में।

प्रश्न: क्या मार्क्सवाद प्रासंगिक है ?

उत्तर : जहाँ तक मार्क्सवाद को मैं एक वैज्ञानिक विचारधारा मानता हूँ वैज्ञानिक विचारधारा कहने का मतलब यह है बदलाव। इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा सिर्फ धर्म एक ऐसी चीज है जो नहीं बदलता है। जितना पुराना हो उतना ही बेहतर यह सिर्फ ससियेंस है जो जितनी नयी हो उतनी बेहतर।
विचारधारा का जहाँ तक ताल्लुक है। विचारधारा में बदलाव ही उसे ससियेंस बनता है। दुनिया में अभी भी पूँजीवाद व सामंतवाद मौजूद है इसलिए मूल कानून है आज भी मार्क्सवाद पूरे उतरते हैं लेकिन हर जगह की परिस्तिथियों के हिसाब से लागू किया जा सकता है। इसका उदहारण हम टेक्नोलॉजी से लें हमारे देश में छोटे खेत हैं जब हम ट्रक्टर की टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करते हैं तब हमें छोटे ट्रक्टर की जरूरत होती है जिन मुल्कों में बड़े-बड़े खेत होते हैं वहां बड़े ट्रक्टर की जरूरत होती है। बिलकुल यही बात मार्क्सवाद तक पूरी उतरती है मार्क्सवाद को देश की परिस्तिथियों की हिसाब से अप्लाई किया जाना चाहिए जो बातें बंगाल पर लागू होंगी , वह बातें शायद गुजरात व उत्तर प्रदेश पर सही न उतरें।
मशीनी तरीके मर्क्सिजम अप्लाई करने से हर चूक इन्कलाब को कई दशक पीछे धकेल देती है। यही हुआ है दुनिया में अलग–अलग हिस्सों में जहाँ मार्क्सवाद धर्म की तरह इस्तेमाल किया गया वहां व्यक्ति या समूह धर्म की और मुड़ेगा मार्क्सवाद की तरफ नहीं।

प्रश्न: वामपंथ के नए मुद्दे क्या होने चाहिए ?

उत्तर: बदलाव की गुंजाइश हर वक्त है। बंगाल केरल की स्तिथि झकझोरने वाले हालात हैं। हमें यह समझना होगा कि पुराने तरीके से काम नहीं चलेगा नए तरीके से सोचना होगा और रचनात्मक होना होगा जो हम तीस चालीस दशक में थे रचनात्मक आन्दोलन की जरूरत है। नया कम्युनिस्ट पैदा करना होगा और जिन सवालों से हमने मुंह फेरा है। जिसमें प्रमुख सवाल है जाति का सवाल व साम्प्रदायिकता के सवाल पर चिंतन करना बहुत जरूरी है। अगर इस देश में फासिस्ज्म आयेगा वह साम्प्रदायिकता व जातिवाद के नाम से आएगा। इन दोनों मुद्दों को हमने नहीं समझा तो हम पिछड़ जायेंगे। हमारे पिछड़े देश की जनता को और पिछड़ना होगा। हमारे आस-पास के देशों में अमेरिका ने यह स्तिथि पैदा कर दी है कि लोकतंत्र न बचे जो हमारे लिये बहुत बड़ा खतरा है।
अगर इस देश में लोकतंत्र बचाना है तो उसकी भी जिम्मेदारी वामपंथ की है।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh