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मोदी सरकार-मजदूर विरोधी सरकार

loksangharsha
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आज देश के लगभग 18 करोड़ मजदूरों ने अपनी 12 सूत्री मांगो को लेकर एक दिवसीय हड़ताल की और उनकी प्रमुख मांग यह है कि एक मजदूर को न्यूनतम वेतन 18000 रुपये दिए जाने चाहिए. मोदी सरकार 350 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 26 दिन काम के मानने पर 9100 रुपये देने के लिए कह रही है. वहीँ उत्तर प्रदेश में एक विधायक का वेतन 75000 रुपये है और भत्तों को मिला कर 1 लाख 25 हजार रुपये प्रतिमाह नगद विधायक को मिलेगा. एक विधायक या सांसद का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है. उसके वेतन और भत्तों को जब भी बढाने की बात आती है पक्ष और विपक्ष चुपचाप बगैर किसी बहस के बढ़ा लेते हैं. मजदूरों को अपना वेतन व भत्ते बढाने के लिए हड़ताल के अतिरिक्त कोई विकल्प नही होता है. वहीँ, मजदूरों की यह भी मांग है कि सेवानिवृत्ति के बाद असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को लगभग 3000 रुपये प्रतिमाह पेंशन दिया जाए. वहीँ, पेंशन में दस हजार से 25 हजार रुपये प्रतिमाह तक बढ़ोत्तरी की गई है।
वहीँ, श्रमिक यह भी मांग कर रहे हैं कि सरकारी कारखानों, संगठनो, प्रतिष्ठानों का निजीकरण न किया जाए तथा ठेकेदारी प्रथा को समाप्त किया जाए.
बैंकों, इनकम टैक्स ऑफिस, बीएसएनएल, पोस्ट ऑफिस, रेलवे मेल सर्विस के दफ्फ्तरों समेत कई कारखानों में काम काज ठप रहा। इस वजह से अरेरा हिल्स स्थित डाक भवन, इनकम टैकस ऑफिस, बैंकों और बीएएसएनएल दफ्तर में काम- काज नहीं हुआ। यहां तक पहुंचे लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ा। न तो टेलीफोन के बिल जमा हुए, न ही मोबाइल के। बैंकों में पैसों का लेन- देन भी नहीं हुआ। इनकम टैक्स में पूरा काम प्रभावित रहा।
मजदूरों की प्रमुख मांगे इस प्रकार हैं कि सातवें वेतनमान की विसंगतियों को सरकार तय समय सीमा में दूर कर, न्यूनतम वेतन 26 हजार रुपए दिया जाए, फिटमेंट फार्मूला में बदलाव किया जाए, न्यू पेंशन स्कीम को खत्म किया जाए,  निजीकरण, आउटसोर्सिंग, ठेकेदारी प्रथा रोकी जाए,  रेलवे और रक्षा में एफडीआई पर रोक लगे, खाली पदों पर भर्ती की जाए, पाबंदी हटाई जाए,  ग्रामीण डाक सेवकों को विभागीय कर्मचारी माना जाए,
महंगाई रोकने के लिए पीडीएस का सबके लिए उपलब्ध कराया जाए।
भारतीय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने एक बयान में कहा है कि हम सेंट्रल और स्‍टेट ट्रेड यूनियनों की ओर से बुलाई गई हड़ताल का पूरी तरह तरह से समर्थन करते है। वर्कर्स की मांगें पूरी तरह से जायज हैं। सरकार का रवैया पूरी तरह से नकारात्‍मक है।
मोदी सरकार अगर रिलायंस के अम्बानियों, अडानी, टाटा, बिरला जैसे कॉर्पोरेट सेक्टर को नियंत्रित करने वाले इजारेदार पूंजीपतियों को छूट देने की बात आती है तो अब तक लाखों-लाख करोड़ रुपये की छूट देकर अपने नारे हिन्दू, हिंदी, हिन्दुस्तान के नारे को साकार कर चुके होते, लेकिन मजदूरों, किसानो बहुसंख्यक आबादी को मोदी और उसकी सरकार कुछ मिलना नहीं है क्यूंकि इनका चरित्र कार्पोरेट सेक्टर के बंधुआ एजेंट जैसी है इसीलिए चाहे रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर की नियुक्ति हो या अन्य नियुक्तियां वह कार्पोरेट सेक्टर नौकरशाहों की होती है जिससे यह लोग ज्यादा से ज्यादा फायदा कोर्पोरेट सेक्टर को पहुंचा सकें. यह सरकार मजदूर विरोधी सरकार है.
सुमन
लो क सं घ र्ष !

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